Pratyangira Sampurna Prayog

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जब ॠण, रोग और शत्रु को निष्प्रभावी करने के सभी उपाय विफल हो जाते हैं। भौतिक संसाधन एवं पुरुषार्थ की सीमाएं भी कुंठित हो जाती है। तब मनुष्य ईश्वर की शरण में, यंत्र-मंत्र व विभिन्न प्रार्थनाओं का सहारा लेता है। ऐसे प्रत्यंडिगरा का प्रयोग अमोघ है…

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Description

जब ॠण, रोग और शत्रु को निष्प्रभावी करने के सभी उपाय विफल हो जाते हैं। भौतिक संसाधन एवं पुरुषार्थ की सीमाएं भी कुंठित हो जाती है। तब मनुष्य ईश्वर की शरण में, यंत्र-मंत्र व विभिन्न प्रार्थनाओं का सहारा लेता है। ऐसे प्रत्यंडिगरा का प्रयोग अमोघ है। परकृत्य पीड़ा, शत्रुकृत्य अभिचार-मारण-मोहन व उच्चाटन, अनिष्ट की आशंकाओं को समूल नष्ट करने में प्रत्यंडिगरा का प्रयोग रामबाण औषधि का काम करती है। पर यह प्रयोग आज तक अत्यंत गोपनीय रहा है। मेरुतंत्र, मंत्रमहोदधि दशमहाविद्या में इस प्रयोग को सांकेतिक रूप से उद्धृत किया गया है। पर संपूर्ण प्रयोग का नितांत अभाव कर्मकांड क्षेत्रा में बना रहा। यह पहला अवसर है कि पं. रमेश द्धिवेदी ने इस ओर ध्यान दिया तथा प्रत्यंडिगरा के सम्पूर्ण प्रयोग को संशोधित व परिमार्जित करके प्रबुद्ध पाठकों हेतु सहज सुलभ कराया। आम व खास पाठकों के दैनिक जीवन से संबंधित हम ऐसे उत्कृष्ट साहित्य को प्रकाशित करने में गौरव अनुभव करते हैं।

Additional information

Weight 170 g
Name

Pratyangira Sampurna Prayog

SKU

AGB01055

Pages

120

Author

Pt. Ramesh Dwivedi

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Pocket Books

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